कई आर्थिक विश्लेषण अर्थव्यवस्था की कमजोर स्थिति बता रहे हैं, ये तीन हालात सुधर जाएं तो अर्थव्यवस्था भी उबर जाएगी

पिछले हफ्ते अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडी ने भारत की सॉवरेन डेट रेटिंग कम कर दी। इसी एजेंसी ने 2017 में भारत की रेटिंग बढ़ाई थी। तब सरकार ने इस उपलब्धि को खासतौर पर बताया था।

इस बार रेटिंग कम होने पर खामोशी है। मूडी का आकंलन एक और सबूत है कि हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है और इसके लिए सिर्फ कोरोना दोषी नहीं है।

मूडी का बयान है: ‘हालांकि कोरोना के संदर्भ में आज का कदम उठाया गया है, लेकिन इसके पीछे महामारी का असर नहीं है। बल्कि महामारी ने भारत के क्रेडिट प्रोफाइल की असुरक्षा को बढ़ा दिया है, जो कि इस झटके से पहले से ही मौजूद थी।’

मूडी के नकारात्मक दृष्टिकोण के पीछे मुख्य कारण थे:

1) निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अपर्याप्त सुधार,

2) घोषित नीतियों को ढंग से लागू न करना,

3) वित्तीय क्षेत्र में तनाव

4) सरकारी खर्च पर नियंत्रण न कर पाना, जिससे घाटा और कर्ज बढ़ा।

कोरोना संकट खत्म होने के बाद भी भारत धीमी गति से चलेगा। यह सरपट दौड़ सकता था, अगर हमने कुछ चीजें सही की होतीं। देश में 2014 से मजबूत बहुमत की सरकार रही है। तब से वे लोग परेशान हैं जो पाकिस्तान की बेइज्जती करने से ज्यादा अर्थव्यवस्था की परवाह करते हैं। यहां तीन कारण दिए जा रहे हैं जिनकी वजह से हम कभी अपनी अर्थव्यवस्था नहीं सुधारते हैं:
1. भारतीय नागरिकों को अर्थव्यवस्थाकी परवाह नहीं है। पाकिस्तान को सबक सिखाइए और लाखों आपकी जय-जयकार करेंगे। अर्थव्यवस्था के बारे में बात कीजिए तो लोग जम्हाई लेंगे, चैनल बदल देंगे। नेता वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसा जनता देखना पसंद करती है। यह केवल एक व्यक्ति या एक सरकार के बारे में नहीं है। जब लोग परवाह करना शुरू करेंगे तो नेता भी परवाह करेंगे।

भारतीय अर्थव्यवस्था की परवाह क्यों नहीं करते? शायद भारतीय बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हैं। शायद हम किस्मत पर बहुत भरोसा करते हैं। हम सोचते हैं कि पैसा सिर्फ काम करने से नहीं आएगा। तभी आएगा, जब ईश्वर चाहेगा। इस आर्थिक उदासीनता के दुष्परिणाम आने वाले समय में दिखेंगे।

हमारी बड़ी बेरोजगार पीढ़ी है। आपको अब भी 7500 रु. महीने पर काम करने के लिए स्नातक मिल जाएंगे। यह 100 डॉलर/माह है। इतना पैसा अमेरिका में मैक्डॉनाल्ड में बर्गर पलटने वाले को एक दिन में मिलता है। हम कम वेतन वाले और कम इस्तेमाल हो रहे बाबुओं का देश बन रहे हैं, नौकरियां खत्म हो रही हैं, ऐसे में उम्मीद है कि सस्ते 4जी डेटा के साथ वीडियो देखने में व्यस्त हमारे युवा जागेंगे।
2. सरकार कोई भी हो, एंटी-बिजनेस ही होती है। मुझे पूरा यकीन है कि सरकार में बहुत से लोग इसे नकार देंगे। वे अपना पसंदीदा जुमला दोहराएंगे, ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’। सरकार के हिसाब से बिजनेस करने में आसानी का मतलब है कि एक आंत्रप्रेन्योर आईएएस अधिकारी के साथ बैठकर चाय की चुस्कियां लेता है, जहां अधिकारी आंत्रप्रेन्योर को बिजनेस करने देता है।

हालांकि ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का मतलब ‘मैं, जिसके पास सत्ता है, वह तुम्हें आसानी से बिजनेस करने दे रहा है’ नहीं है। बल्कि यह ‘मैं, अपनी सत्ता के बावजूद, तुम्हें बिजनेस करने से नहीं रोक सकता’ है। सोच में यह बदलाव हमारे सत्ता चलाने वालों के लिए असंभव है।

हमारी अंतर्निहित जाति व्यवस्था वाली मानसिकता में बिजनेस नेताओं और बाबुओं से नीचे आता है। अमेरिका में राष्ट्रपति ट्विटर के सीईओ से तकरार करते हैं। ट्विटर सीईओ जानते हैं कि कुछ भी हो जाए, राष्ट्रपति उनके बिजनेस को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। क्या आप भारत में ऐसी कल्पना कर सकते हैं?
3. भारतीय उद्योगपतियों में नवाचार की कमी है। थोड़ा दोष बिजनेस मालिकों का भी है। उनमें से ज्यादातर नवाचार (इनोवेशन) और जोखिम को नकारते हैं और हुनर की कद्र नहीं करते। उनकी अपने बच्चों को शीर्ष नौकरी पर पहुंचाने, अन्य अमीरों के साथ पार्टी करने और कुछ के लिए शादियों में कोरोना के राहत पैकेज से भी ज्यादा खर्च करने में रुचि होती है।

बेशक अपने बच्चों को बिना काम के अमीर बनाओ। लेकिन क्या उन्हें हमेशा सीईओ की कुर्सी पर बैठना चाहिए? आप कंपनी चलाने किसी हुनरमंद को क्यों नहीं लाते? क्या आप जानते हैं कि इनोवेटिव कंपनियां एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट या अमेजॉन की व्यक्तिगत बाजार पूंजी भारत की सूचीबद्ध कंपनियों की कुल बाजार पूंजी के लगभग बराबर है?

क्या आपने किसी सच्चे इनोवेटिव अमेरिकी आंत्रप्रेन्योर को देखा है? वे कैसे रहते और सोचते हैं? क्या सिर्फ यही मायने रखता है कि आपके जन्मदिन पर कौन आया और आपकी अगली महंगी कार कौन-सी है? विरासत में मिला भौतिकवाद नहीं, सार्थक जीवन जिएं।
भारतीय अर्थव्यवस्था कई दशकों में ऐसी बुरी स्थिति में नहीं रही है। हम इसे नहीं सुधारेंगे तो अगली पीढ़ी बुरी तरह प्रभावित गोगी। हम सभी हो, लोगों, सरकार और बिजनेस मालिकों को हमारी मानसिकता में बड़े बदलाव लाने होंगे, तभी भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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